नई शिक्षा नीति लागू करने में बड़ी चुनौति
एजुकेशन एक्सपर्ट्स का मानना है कि प्राइमरी से लेकर सेकंडरी लेवल तक की पढ़ाई हो या फिर बोर्ड एग्जाम का रूप बदलने का प्लान, इन सबके लिए सबसे जरूरी है टीचर्स की क्वॉलिटी ट्रेनिंग। अगर 2022 तक इस पॉलिसी के कुछ पहलुओं को क्लासरूम तक पहुंचाना है, तो जल्द ही टीचर्स ट्रेनिंग का फ्रेमवर्क तैयार करना होगा।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह नीति शिक्षा के हर क्षेत्र में आधारभूत बदलाव की संभावनाएं लेकर आई है। सीबीएसई के पूर्व चेयरमैन अशोक गांगुली कहते हैं, ‘नेशनल एजुकेशन पॉलिसी बहुत सारे बदलाव लाई है और इन्हें लागू करने के लिए टीचर्स के माइंडसेट और स्किलसेट दोनों पर ही काम करना होगा।’
’12 साल की जगह अब 15 साल की स्कूली व्यवस्था पर फोकस होगा। प्री स्कूल पर ध्यान दिया गया है। देशभर में एक पैटर्न पर करिकुलम रहेगा। प्रशासनिक तौर पर इतने बड़े स्तर पर यह कैसे संभव होगा, यह आगामी सालों में ही पता चलेगा। बच्चों के विकास के लिए यह एक्टिविटी पर आधारित लर्निंग, एक्सपेरिमेंटल और इनोवेटिव लर्निंग लेकर आई है। इससे बच्चों को बहुत मदद मिलेगी, लेकिन इसे लागू करने के लिए प्रशिक्षित शिक्षक चाहिए।’
चुनौतियां और प्लानिंग
का विजन प्राइमरी लेवल पर काफी फोकस करता है। दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU – Delhi University) के एजुकेशन डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ पंकज अरोड़ा कहते हैं, ‘नीति ने प्राइमरी यानी बच्चों की फाउंडेशन लर्निंग पर ध्यान दिया है। यह फायदेमंद तभी साबित होगी जब इसे ग्राउंड लेवल पर लागू किया जाए। आंगनवाड़ियों की स्थिति खराब है और अगर यह सुधरती नहीं तो फायदा नहीं।’
डॉ पकंज कहते हैं, ‘टीचर्स की ट्रेनिंग बहुत जरूरी है। प्री-सर्विस टीचर एजुकेशन में तो यह नेशनल करिकुलम फॉर टीचर एजुकेशन 2021 के साथ आ जाएगा। लेकिन 80 से 90 फीसदी टीचर्स अभी क्लासरूम में पढ़ा रहे हैं और हालात खराब है। पॉलिसी तैयार करने वाले एक्सपर्ट्स के वीडियो लेक्चर, मूक्स हर डिस्ट्रिक्ट-ब्लॉक तक क्षेत्रीय भाषाओं में पहुंचाए जा सकते हैं। जिन्हें लोकल एक्सपर्ट टीचर्स को समझाए। क्वालिटी ओरिएंटेशन, वर्कशॉप, ट्रेनिंग प्रोग्राम कराने होंगे।’
शिक्षाविदों का मानना है कि नई शिक्षा नीति ‘क्लोज्ड एंडेड करिकुलम’ से ‘ओपन एंडेड करिकुलम’ की ओर ले जा रही है। अशोक गांगुली कहते हैं, इसने मिडल और सेकंडरी लेवल पर सामयिक विषयों जैसे एआई (Artificial Intelligence), एनवायर्नमेंटल एजुकेशन, ऑर्गेनिक लिविंग पर फोकस किया है। यह 21वीं शताब्दी की स्किल्स पर भी जोर दे रही है। रटने वाली लर्निंग को खत्म किया जाएगा।
‘इसके अलावा, बोर्ड एग्जामिनेशन का डिजाइन बदलने की बात हो रही है। सिलेबस कम किया जाएगा। काम न आने वाली कुछ चीजों को हटाकर इंटरैक्टिव क्लास, एक्सपेरिमेंटल लर्निंग और वर्तमान में जो टॉपिक हैं – नैनोटेक्नॉलजी, साइबर सिक्योरिटी, जिनॉमिक्स जैसी नवीनतम जानकारी दी जाएगी। इसके अलावा क्वेश्चन पेपर अलग ढंग से सेट होंगे। एक अच्छी मार्किंग स्कीम अएगी। इवैल्यूशन का तरीका बदलेगा। लोकल लैंग्वेज में पढ़ाने के लिए हमें ट्रेंड टीचर्स की जरूरत होगी।’
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वह कहते हैं, ‘इन सबसे साथ बड़ी चुनौतियां सामने हैं, क्योंकि हमारे ज्यादातर टीचर्स या तो सेमी स्किल्ड हैं या अनस्किल्ड। 2022 तक क्लासरूम में स्किल पर आधारित लर्निंग लागू करने की बात की गई है। लेकिन इसके लिए पहले देशभर में मैसिव टीचर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम लाना होगा, ताकि उनके माइंडसेट और स्किलसेट को ट्यून किया जा सके। अभी जो माइंडसेट है वो यही है कि हमने जैसे पढ़ा है, वैसे ही हम पढ़ाएंगे। इसे हटाना होगा।’
मनीष सिसोदिया ने क्या कहा
टीचर्स ट्रेनिंग का मुद्दा दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने भी उठाया है। सिसोदिया कहते हैं, ‘नई नीति के तहत अब बीएड चार साल का होगा। क्वालिटी टीचर तैयार करने के लिए यह अच्छी पहल है। मगर 30 करोड़ बच्चों को अभी 80 लाख शिक्षक पढ़ा रहे हैं। इन पर नई नीति कैसे काम करेगी, यह इसमें नहीं है। शिक्षकों को राष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षण की जरूरत है।
सिसोदिया ने कहा कि टीचर्स की ट्रेनिंग पर काम नहीं किया इसलिए प्रोग्रेसिव सोच से लाया गया कॉम्प्रिहेंसिव इवैल्यूशन भी लागू नहीं हो पाया था। अंत में शानदार आइडिया ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ विलेन बनकर खड़ा हो गया था।
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डॉ पंकज अरोड़ा कहते हैं, ‘जब नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क 2005 आया था, उस वक्त भी पॉलिसी मेकर्स ने क्वालिटेटिव ड्राफ्ट तो दिया, लेकिन यह क्लासरूम तक नहीं पहुंचा। नई नीति अगले 20 साल के लिए गाइड कर रही है। इसका असर अभी से नहीं दिखेगा। पूरी पॉलिसी पर टीचर्स का माइंडसेट बदलने में ही करीब 5 साल लग जाएंगे।’