पारम्परिक पोशाक: क्यों है खास और कैसे चुनें?

जब आप शादी, त्यौहार या कोई खास अवसर देखते हैं, तो सबसे पहली चीज़ दिमाग में आती है – कपड़े। लेकिन आम फैशन से हटकर, पारम्परिक पोशाक हमारे जुड़ाव, पहचान और इतिहास का हिस्सा है। इसे पहनने से न केवल अपनी जड़ों से जुड़ते हैं, बल्कि लोगों को अपनी संस्कृति की खूबसूरती दिखा पाते हैं।

भारत के 28 राज्य, कई भाषा‑भाषी समूह और अलग‑अलग जलवायु के कारण पारम्परिक पोशाकें बहुत विविध हैं। एक ही देश में स्वेटर, साड़ी, धोती, कुर्ता‑पैजामा, गहना‑ज्वेला आदि के अनगिनत रूप मिलते हैं। इन कपड़ों की बुनाई, रंग, कढ़ाई और डिज़ाइन में स्थानीय कुशल कारीगरों की मेहनत छुपी होती है।

मुख्य प्रकार की पारम्परिक पोशाकें

**साड़ी** – भारत की सबसे पहचान वाली पोशाक, लगभग हर राज्य में अलग‑अलग शैली में पहनी जाती है। बॅंगी की लहंगा‑साड़ी, बंगाल की टैक्सिडो साड़ी, पंजाब की पतली लहंगा‑साड़ी, दक्षिण भारत की कंचनजंगा साड़ी आदि। किन्तु सभी में एक बात समान है – इसे ढीला लपेटा जाता है, जिससे आराम भी मिलता है और स्टाइल भी।

**धोती‑कुर्ता** – पुरुषों के बीच खासकर उत्तर भारत, महाराष्ट्र और गुजरात में लोकप्रिय। धोती को कमर के चारों ओर कस कर पहना जाता है, और कुर्ता मज़बूत लेकिन हल्का कपड़ा होता है। शादी या उत्सव में अक्सर इसे चमकदार गोटे या कढ़ाई के साथ सजाया जाता है।

**पंजाबी सूट** – पंजाब की झलक इसके शेरवानी, जूते (जुती) और पगड़ी में दिखती है। शेरवानी में अक्सर ज़री‑काम, बंधन और चमकीले रंग होते हैं, जो शादी के अवसर पर खासी सराही जाती है।

**लेहंगा‑चोली** – राजस्थानी, गुजराती और हिमाचली महिलाओं के बीच लोकप्रिय। लेहंगा की लंबी क़द, घुमावदार ढाँचा और झरोक़ी बनावट इसे विशेष बनाती है। चोली को भुड़िया, थाँथ या सिकाई से सजा सकते हैं।

**केरल साड़ी (स्ट्रेट बैन)** – इस साड़ी को पारंपरिक तरीका से कंधे पर लपेटा जाता है, जिससे इसे ‘स्ट्रेट बैन’ कहा जाता है। यह हल्के केसरी या हरे रंग की होती है, जो समुद्रतट और प्राचीन मंदिरों में खूबसूरती से दिखती है।

पारम्परिक पोशाक को सही तरीके से पहनने के टिप्स

1. **सही कपड़ा चुनें** – मौसम और अवसर के हिसाब से कपड़े का चुनाव जरूरी है। गर्मी में खादी, सूती या लीनन, सर्दियों में ऊनी या रेशमी कपड़े बेहतर रहेंगे।

2. **फिटिंग पर ध्यान दें** – चाहे साड़ी हो या धोतिया, फिटिंग सही न हो तो आराम नहीं रहेगा। अगर आप पहली बार बना रहे हैं, तो कसीद या अनुभवी दर्जी की मदद लें।

3. **रंग मेल** – पारम्परिक पोशाक में रंगों का बंधन बहुत महत्व रखता है। हल्की त्वचा वाले लोग हल्के रंग जैसे पेस्टल, पीला, हल्का नीला चुन सकते हैं, जबकि गहरी त्वचा वाले लोग गहरा लाल, जामुनी या नेवी बेहतर लगाते हैं।

4. **ऐक्सेसरीज़ का उपयोग** – पर्स, ज्वेला, बांगड़ी, पायल, बैंड, साड़ी में पल्लू आदि से पोशाक को पूरा किया जा सकता है। लेकिन ज्यादा सजावट से ध्यान बँट न जाए, इसलिए एक या दो आइटम को प्रमुख रखें।

5. **सही फुटवियर** – साड़ी के साथ जूते, पायजामा के साथ चप्पल या सैंडल, धोती के साथ जूते या जूता‑जुते, यह सभी पहनावे को संतुलित बनाते हैं। जूते का रंग पोशाक के साथ मिलाना न भूलें।

पारम्परिक पोशाक सिर्फ कपड़ा नहीं, बल्कि कहानी है। इसे समझकर और सही तरीके से पहनकर आप न सिर्फ सुंदर दिखेंगे, बल्कि अपनी संस्कृति को भी गर्व से प्रस्तुत करेंगे। अब अगली बार जब कोई कार्यक्रम आए, तो इस गाइड को याद रखें और अपने वार्डरोब में थोड़ा पारम्परिक रंग भरें।

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