मई 2023 में प्रकाशित हमारे आलेख ने एक सीधे सवाल को उठाया: भारतीय सरकार एयर इंडिया को निजी क्यों नहीं कर देती? यह सिर्फ एक आर्थिक सवाल नहीं है, बल्कि भावनात्मक, सामाजिक और प्रशासनिक कारण भी इसमें जुड़े हैं।
सबसे पहला कारण भावनात्मक और राजनैतिक है। बहुत लोग एयर इंडिया को राष्ट्रीय पहचान का हिस्सा मानते हैं। इससे जुड़ी संवेदनशीलता चुनाव और सार्वजनिक राय पर असर डाल सकती है। सरकार किसी फैसले से पहले इस भावनात्मक डिस्कॉन्फर्ट को परखती है।
एयर इंडिया पर जमा भारी कर्ज एक बड़ा रोड़ा है। किसी भी निजी खरीदार को सिर्फ एयरलाइन के वैल्यूएशन ही नहीं बल्कि उस भारी देनदारी का बोझ भी संभालना होगा। इसलिए खरीदारों को निवेश करने में हिचक होती है और सरकार को सौदे को आकर्षक बनाने के लिए सरकार को बीच में कदम रखना पड़ता है।
कर्ज के साथ जुड़ा जोखिम सिर्फ ब्याज नहीं होता, बल्कि पुरानी अनपेयड देनदारी, पेंशन और लीगसी कॉन्ट्रैक्ट्स भी हैं, जो खरीददार के लिए अनिश्चितता बढ़ाते हैं।
एयर इंडिया के हजारों कर्मचारी हैं जिनके रोजगार और भविष्य का सवाल जुड़ा है। बड़े यूनियन और स्टाफ रिस्टैक्चरिंग की प्रक्रियाएं राजनीतिक और सामाजिक दबाव जेनरेट करती हैं। सरकार अक्सर ऐसे फैसले लेते समय नौकरी बचाने के विकल्पों और लागत का हिसाब लगाती है।
निजीकरण का मतलब अक्सर सख्त कटौती और बदलाव होता है — यह स्थानीय समुदायों और कर्मचारियों पर असर डालता है, इसलिए सरकार कोई भी कदम उठाने से पहले इन पहलुओं पर विचार करती है।
इसके अलावा, एयर इंडिया जैसी बड़ी एयरलाइन का देश के हवाई नेटवर्क पर महत्वपूर्ण रोल होता है। दूर-दराजी रूट्स पर सस्ती सेवाएँ बनाए रखना, आपातकालीन उड़ानें और अंतरराष्ट्रीय कनेक्टिविटी जैसे सार्वजनिक हितों को ध्यान में रखना होता है। निजी कंपनियाँ प्रोफिटेबल रूट्स चुनेंगी, जिससे छोटे शहरों की कनेक्टिविटी प्रभावित हो सकती है।
एक और व्यावहारिक वजह है — नीतियों और बिजनेस मॉडल में सुधार की जरूरत। बिना ठोस रीमॉडेलिंग के एयरलाइन का निजीकरण टिकाऊ नहीं रहता। इसलिए पहले अंदरूनी सुधार और संरचनात्मक बदलाव जरूरी होते हैं, वरना निजी हाथों में भी नुकसान के और जोखिम बन सकते हैं।
अंत में, बिकवाली की प्रक्रिया जटिल और लंबी होती है — वैल्यूएशन, बिडिंग, कानूनी क्लियरेंस और पब्लिक रिएक्शन सब का प्रभाव बड़े फैसले पर पड़ता है। इसलिए सरकार अक्सर तेज़ी से निर्णय नहीं ले पाती।
मई 2023 के इस आर्काइव पोस्ट का मकसद यही था कि पढ़ने वाले सीधे और सरल कारण समझें — भावनात्मक, वित्तीय, सामाजिक और प्रशासनिक चुनौतियाँ मिलकर निजीकरण को मुश्किल बनाती हैं। अगर आप चाहें, मैं इन कारणों में से किसी एक पर और गहराई से लेख दे सकता/सकती हूँ।
भारतीय सरकार एयर इंडिया को निजीकरण क्यों नहीं करती है, इस सवाल के कई कारण हो सकते हैं। पहली बात तो यह है कि एयर इंडिया भारत की राष्ट्रीय पहचान का प्रतीक है, जिसे सरकार हाथ से जाने नहीं देना चाहती। दूसरा कारण हो सकता है कि एयर इंडिया के बड़े कर्ज के कारण निजी कंपनियों को इसमें निवेश करने में संकोच हो सकता है। तीसरा कारण यह हो सकता है कि सरकार एयर इंडिया के कर्मचारियों की नौकरी और भविष्य के प्रति चिंता महसूस करती है। चौथा कारण हो सकता है कि एयर इंडिया की मौजूदा नीतियों और व्यवसाय मॉडल में सुधार की आवश्यकता हो सकती है। अंत में, हम कह सकते हैं कि भारतीय सरकार एयर इंडिया के निजीकरण के विचार करती है, लेकिन कई कारणों के कारण इसे नहीं करती है।